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आज की कबीर हैं 'कहत कबीरन' वाली रश्मि बजाज

时间:2023-10-04 01:38:09 来源:网络整理编辑:जम्मू कश्मीर

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एक थे संत कवि कबीरदास... जिन्होंने अपनी रचनाओं से समाज में व्याप्त कुरीतियों और धार्मिक आडंबरों पर प

एक थे संत कवि कबीरदास... जिन्होंने अपनी रचनाओं से समाज में व्याप्त कुरीतियों और धार्मिक आडंबरों पर प्रहार किया था. 15वीं सदी में संत कबीर के कटाक्ष से धर्म के ठेकेदार विचलित हो उठे थे. कबीर ने राम-रहीम के एकत्व पर जोर दिया और प्रेम से ईश्वर की प्राप्ति का ज्ञान दिया. कबीर के दृष्टिकोण का प्रभाव कवयित्री रश्मि बजाज पर खूब पड़ा और यह उनके हालिया काव्य-संग्रह 'कहत कबीरन' में पूरी तरह नज़र आता है. 'कहत कबीरन' यह साबित करता है कि उसकी रचयिता रश्मि बजाज मौजूदा दौर की कबीर हों या नहीं पर वे कबीर के विचारों में आकंठ डूबी हुई हैं. वे कबीर की भांति अपनी रचनाओं से धर्म,आजकीकबीरहैंकहतकबीरनवालीरश्मिबजाज जाति में बंटे समाज पर सटीक प्रहार करती हैं.इस संकलन में शामिल उनकी एक कविता 'जेरुसलम' इसका जीवंत उदाहरण है. वे लिखती हैं-दिल है औरत काजैसे जेरुसलमउनकी पाकीजगी हैउसका गुनाह...धर्म के नाम पर बंटे समाज और दंगों की त्रासदी पर रश्मि बजाज का दिल पसीजता भी है और गुस्सा भी जन्म लेता है. उनकी कविता 'ख़ामोश' की पंक्तियां यों हैं-लाश की जातलाश का मज़हबमालूम होने तक!रोती है तोसिर्फ कबीरन...कबीर की तरह कबीरन ने धर्म, जाति में बंटते समाज पर लिखने का कोई मौका नहीं छोड़ा है. बड़ी खूबसूरती से वे लिखती हैं-अंधेरे हैं दबंगउजाले दुबक गएचिराग जब सेमजहबों, जातों मेंबंट गए…रश्मि बजाज की कलम यहीं नहीं रुकती है. रश्मि की हर कविता में एक संदेश है. वे एक स्त्री होने के नाते स्त्री का पक्ष बहुत मजबूती से रखती हैं. उनकी कई कविताओं में स्त्री के साथ होने वाली अमानवीयता, अत्याचार और ज्यादतियों का विरोध झलकता है. कवयित्री एक जगह 'मेरी प्यारी अफगानी बहनों' में लिखती हैं-तुम्हारी बेबसीतुम्हारी पीड़ाकर रही हैबौनेविश्व केसारे शब्दकोषसारे अक्षर...पुरुषवादी समाज और घर में एक स्त्री की क्या भूमिका होती है. इस पर न केवल वे बारीक नजर रखती हैं, बल्कि अपनी लेखनी से उससे जुड़ी परंपराओं पर सटीक कटाक्ष भी करती हैं. उनकी कलम घर के केंद्र में रहने वाली स्त्री के हालातों पर भी खूब चलती है और वे पाती हैं कि ये औरतें, न जाने कितनी उदासी ओढ़े रहती हैं. उनके शब्दों में-घर कीनम, उदास दीवारेंइस घर मेंकोई औरत भीरहती है…कवि हृदय ने अपने आसपास की हर घटना पर गहन नजर रखी है. ऐसे में रश्मि बजाज कोरोनाकाल को कैसे छोड़ देतीं? उन्होंने कोरोना की त्रासदी पर मानवता का संदेश देने की कोशिश की है. इस दौर में उन्होंने कई कविताओं की रचना की. जो कोरोना त्रासदी का भयावह मंजर प्रस्तुत करती हैं, पर इसके साथ ही वे इस संकटकाल में उम्मीद की लौ भी जलाती हैं-करुणा प्रार्थना आस्थाके स्वरउठ रहे थेरणभूमि मेंलड़ रहे थे जहां स्वास्थ्य-दूतमृत्यु के विरुद्धवास्तविक युद्ध...'कहत कबीरन' रश्मि बजाज का छठा काव्य संग्रह है. इससे पहले रश्मि बजाज ने 'मृत्योर्मा जीवनम् गमय', 'निर्भय हो जाओ द्रौपदी', 'सुरबाला की मधुशाला', 'स्वयं-सिद्धा' और 'जुर्रत ख्वाब देखने की' जैसे चर्चित काव्य संग्रहों की भी रचना की है. बजाज भारत सरकार में संयुक्त हिंदी सलाहकार और भिवानी के वैश्य पीजी कॉलेज के अंग्रेजी विभाग की विभागाध्यक्ष रहीं हैं.रश्मि की कविताओं में भावानुसार शब्दों का सटीक प्रयोग हुआ है. उनकी सधी हुई भाषा कविता को ज्यादा धारदार बना देती है. शब्दों और भावों का अच्छा तालमेल इस काव्य-संग्रह की चेतना है.खोज रही हूंमैं वह भाषाहर शब्द काअर्थ हो जहांकेवल प्रेमलिपि स्निग्धताव्याकरण मेंउमगती हो चेतना कीशुभ्र अन्त: सलिला…रश्मि बजाज की कलम से न सिर्फ प्रेम कविताओं का जन्म हुआ है बल्कि बगावत भी हुई है. आप जब इस पुस्तक को पढ़ेंगे तो कई रूप-रंग आपको प्रभावित करेंगे.प्रेम परकविता लिखनारूमानियत नहींएक बगावत है!उनकी कविताओं में मानवता और आदर्शवाद का संदेश हर पन्ने पर नज़र आएगा. अलग-अलग भाव की कविताएं संग्रह की खासियत हैं. काव्य संग्रह 'कहत कबीरन' चार खंडों 'सांच-पंथ', 'कोरोना-काले', 'स्त्री' और 'ऐ मेरे देश' में बंटा है.रश्मि बजाज ने बहुत सादगी, खूबसूरती और भावों के साथ इस संग्रह को संवारा है. इस संग्रह को पढ़कर ही आप कबीरन के अतंर्मन की गहराईयों को समझ पाएंगे.***